शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

रूपशूलिता

रूपशूलिता
बहुत बार चाहा , में शूलों का दर्द कहूं 
किन्तु एक रूप उतर आता है गीतों में.


जब भी में आया हूँ फूलों के मधुबन में ,
शूलों से भी  मैंने रूककर  बातें की हैं .,
फूलों ने अगर दिए मकरंदित स्वप्न मधुर ,
शूलों ने भी  मुझको दुःख की रातें दी हैं.


बहुत बार चाहा दुःख सहकर भी मौन रहूँ ,
वरवास एक  रूप गुनगुनाता है गीतों में,


मेरे मन पर यदि है जादू मुस्कानों का ,
आँसू की भाषा भी जानी पहचानी है ,
एक अगर राधा है ब्रज के मनमोहन की ,
दूजी तो घायल यह मीरा देवानी है.


बहुत बार चाहा है  आँसू के साथ बहूँ ,
किन्तु एक रूप  मुस्कराता है गीतों में.




                                                     क्रिश्नाधार मिश्र 

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